चर्चित पुस्तक चिलम की समीक्षा अशोक पांडेय अनहद द्वारा की गयी
अयोध्या घनश्याम यादव (कंट्रोल इंडिया)

सुल्तानपुर जिले के तिरहुत बाजार निवासी राष्ट्रीय कवि व साहित्यकार पुष्कर सुल्तानपुरी की चर्चित पुस्तक चिलम की समीक्षा सुल्तानपुर के जाने माने कवि अशोक पाण्डेय ’अनहद’ द्वारा की।
पुष्कर सुल्तानपुरी की ’चिलम’
जी हां, जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि, अर्थात आप जिसे जिस रूप में देखेंगे वो चीज आपको वैसे ही नजर आएगी। दुनिया को सकारात्मक दृष्टि से देखें तो दुनिया बहुत ही खूबसूरत दिखती है। सकारात्मक हर नकारात्मक वस्तु में भी सामंजस्य स्थापित कर ही लेती है और परिणाम स्वरुप उस नकारात्मक वस्तु के परिणाम भी सकारात्मकता में ही परिवर्तित हो संबंधित को सुख की अनुभूति कराने लगते हैं।
ऐसे ही हमारे जनपद के श्रेष्ठ कवि हैं भाई श्री पुष्कर अग्रहरि जी जो पुष्कर सुल्तानपुरी के नाम से प्रदेश व देश में जनपद का नाम गौरवान्वित कर रहे हैं। कवि सम्मेलनीय मंचों पर आपकी जोरदार साहित्यिक प्रस्तुत होती है। बुलाए और खूब सुने जाते हैं ।
आपकी तीन पुस्तकें पूर्व में प्रकाशित हो चुकी हैं, चौथी भी हिन्दी श्री प्रकाशन से प्रकाशित होकर आम जनमानस तक पहुंच चुकी है, इस समय मेरे भी हाथों में है। पुस्तक का नाम भी कुछ अद्भुत ही है
’ चिलम’, जी हां ,है न अद्भुत, आप सोच रहे होंगे कि चिलम जैसी नशा पत्ती वाली वस्तु पर क्या कविता हो सकती है लेकिन नहीं हुई है और और आश्चर्य जनक ढंग से हुई है। भाई पुष्कर ने यह सिद्ध भी किया है की चिलम जैसी निरर्थक वस्तु को कैसे सार्थकता का रूप दिया जा सकता है। कैसे चिलम पर भी 200 मुक्तक लिखे जा सकते हैं। कैसे इस नाम को भी प्रबंध काव्य का रूप दिया जा सकता है। कैसे चिलम के सह उपकरण साफी और गिट्टक के साथ तादात्म्य स्थापित किया जा सकता है। कैसे साफी, गिट्टक और चिलम के माध्यम से इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन और न्यूट्रॉन की खोज की जा सकती है। इसकी मस्ती में सतो, रजो और तमो गुणों से एकात्म स्थापित किया जा सकता है और कैसे यही साफी गिट्टक और चिलम ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश का भी दर्शन करा सकती है । पुस्तक पढ़ेंगे तो ये सारा कुछ आपको पढ़ने को मिलेगा।
अचंभा , कुल मिलाकर अचंभा ही है पुष्कर की चिलम। प्रत्येक मुक्तक में दर्शन है।पुस्तक से केवल एक मुक्तक चढ़े हुए बटुले के एक चावल के रूप में प्रस्तुत है _
स्वार्थ और परमार्थ करे क्या, जब खुद को कर लिया खतम।
दृष्टा भाव लिए बैठा है, देख रहा हर एक कदम।
दृश्य बुलबुला है पानी का, बना और मिट जाएगा ,
लेकिन हो तटस्थ बैठी है, अड्डे पर ही चढ़ी चिलम।।
निस्संदेह ये ’चिलम ’ भाई पुष्कर सुल्तानपुरी को पुष्कर सुल्तानपुरी के बाद भी सदियों तक पुष्कर सुल्तानपुरी के रूप में आमजनमानस के हृदय और मानस पटल पर स्थापित कर उन्हें अमरता प्रदान करेगी।।
हार्दिक बधाई। बहुत-बहुत मंगल कामनाएं।
*चिलम पुस्तक की कुछ पंक्तियां*
इस जग के नियमों से बंधकर,मुर्दा हो जाते हैं हम।
जगा जगा कर जियो जिन्दगी,बंधे नियम को करो ख़तम।।
मर्यादाएं अक्सर आकर, उत्सव छीना करती हैं,
अहलादित होना है तो फिर,आओ पकड़ो चढ़ी चिलम।।
ये शरीर नश्वर है साधक, जीवन का विस्तार अगम।
जगत देखने की सीमा है, तेज ख़तम तो जगत ख़तम।।
तेरा अनुभव, तेरी मर्जी, तेरा कर्ता भाव रसिक,
इसीलिए अति लम्बी दूरी, पर दिखती है तुझे चिलम।।
जाना अनजाना मत करना, खोना मत पाने को तुम।
अनुभव को मत पोंछ रसिक तू, राह दिखेगी तुम्हें स्वयं।।
मत हट पीछे समय धार संग, पथ पर चलते रहना है,
थाल सजा कर तुम्हें पूजने आ जायेगी स्वयं चिलम।।
ब्रम्हा, विष्णु, महेश करों से, बंधा हुआ है सृष्टि नियम।
इन्हीं तीन का रूप बदलकर, सब कहते हैं सत, रज, तम।।
नई खोज ने इलेक्ट्रान, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन कहा,
साधक गण इसको कहते हैं, साफ़ी, गिट्टक और चिलम।।